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डेढ़ वर्ष में बेटे की हुई मौत तो कई दिव्यांग बच्चों के लिए पीआर शिर्के बन गई मां

खोल दिया स्कूल, 500 बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दी जा रही ट्रेनिंग

छत्तीसगढ़/दुर्ग: लगभग डेढ़ वर्ष की उम्र में अनमोल को तेज बुखार हुआ और ब्रेन डेड हो गया। जिसके बाद चार साल की उम्र में पहुंचते-पहुंचते वह पूरी तरह बिस्तर पर आ गया। ऐसे में मां पीआर शिर्के निजी स्कूल में नौकरी करती थी, लेकिन अनमोल की हालत देखकर उन्होंने तय किया किया कि अब नौकरी छोड़कर उन्हें बच्चे की सेवा जतन में लग जाना है।

अनमोल अब इस दुनिया मे नहीं रहा: जिसका परिणाम कुछ वर्षों के बाद यह रहा कि आज स्नेह संपदा स्कूल में लगभग 500 दिव्यांग बच्चे सेल्टर में रहकर आत्मनिर्भर की तरफ बढ़ रहे है। इन सभी दिव्यांग बच्चों की देखभाल पीआर शिर्के एक माँ के तौर पर कर रही हैं। 24 वर्ष की आयु में अमोल दुनिया से चला गया, लेकिन स्नेह संपदा विद्यालय अभी भी चल रहा है। संचालिका पीआर शिर्के कुछ दिनों अस्वस्थ है, इसके बाद भी बच्चों की सेवा में जुटी हुई हैं।

दिव्यांग बच्चों की मनोदशा ने बदली एक माँ की सोच : बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि अमोल की तरह और कई लोग हो सकते हैं । जो बोल-बता नहीं पाते और परिवार के सदस्यों को उनके सेवा जतन में परेशानी होती होगी। बस यही से उन्होंने एक मां के तौर पर ऐसे पीड़ितों एवं उसके परिवार के सदस्यों की मदद के लिए भिलाई में स्नेह संपदा विद्यालय की स्थापना की।
यह विद्यालय वर्ष 1991 से संचालित है। यहां मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को शिक्षित प्रशिक्षित करने का काम किया जाता है।

कई डॉक्टर को दिखाएं, लेकिन उपचार नही मिला
अमोल को याद कर मां पीआर शिर्के बताती हैं कि उसका बच्चा वास्तव में अनमोल था। कई डाक्टरों को दिखाया लेकिन सभी ने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे बच्चों व परिवार के सहयोग के लिए मानसिक द्विव्यांगों के लिए संचालित होने वाली संस्थाओं के संबंध में जानकारी जुटाई।

तीन बच्चों से शुरू किया विद्यालय का शुभारंभ
पीआर शिर्के ने बताया कि एक नवंबर 1991 को तीन बच्चों से सेक्टर-4 प्रगति महिला समिति भिलाई से स्नेह संपदा विद्यालय का शुभारंभ किया। 11 जून 1993 को संस्था को पंजीकृत किया गया। अगस्त 1994 में सेक्टर-8 गैरेज रोड स्थित बीएसपी के पुराने रेस्ट हाउस में उक्त संस्था को स्थापित किया। बीएसपी ने यह जगह 33 वर्ष के लिए लीज पर संस्था को आवंटित कर दिया।

स्वयं का कार्य करने बच्चों को करते हैं प्रशिक्षित
संचालिक पीआर शिर्के के मुताबिक इस संस्था में वर्तमान में करीब 55 लोग हैं। जिनकी आयु सात वर्ष से लेकर 55 वर्ष तक की हैं। ऐसे बच्चे जिनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं उनके लिए शेल्टर हाउस की व्यवस्था भी है। इस हाउस में करीब सात बच्चे हैं। वहीं अन्य बच्चों को उनके पालक सुबह संस्था में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए लाते हैं और शाम को अपने साथ ले जाते हैं। पीआर शिर्के ने बाया कि मंदबुद्धि बच्चों को स्वयं का कार्य करने की दिशा में आत्मनिर्भर बनाने प्रशिक्षित किया जाता है। ऐसे बच्चों के पालकों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे अपने बच्चों की जरूरतों को समझें।

आत्मनिर्भर बनाने का लिया संकल्प
फोटो पीआर शिर्के
बेटे अमोल की स्थिति देखने के बाद मैंने मंदबुद्धि बच्चों को स्वयं का कार्य करने में आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लिया। इस काम में लोगों ने खुले मन से सहयोग भी किया।
पीआर शिर्के
संचालिका, स्नेह संपदा विद्यालय, भिलाई

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