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कवर्धा में सोयाबीन की खेती से किसानों का मोहभंग, पैदावार में गिरावट

सोयाबीन की फसल 20 हजार से घटकर 10 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गई

कवर्धा : कबीरधाम जिले में वर्ष 2016 के पहले किसान सोयाबीन की फसल लिया करते थे। क्योंकि, किसानों को फायदा होता था, साथ ही उत्पादन भी ठीक हो जाता था। लेकिन, इसके बाद बारिश ने साथ देना छोड़ दिया। इस कारण जिले में अब इस फसल की गिरावट आने लगी है। किसान अब लगातार धान का रकबा बढ़ा रहे है। एक समय में पूरे जिले में सोयाबीन की फसल 20 हजार हेक्टेयर में ली जाती थी। अब ये 10 हजार से नीचे चला गया है। स्थिति ऐसी है कि कृषि विभाग के तय लक्ष्य की पूर्ति तक नहीं हो पा रहीं है। ऐसे में सोयाबीन की खेती से किसानों का मोहभंग हो रहा है। पूर्व में यह फसल धान, गन्ने के बाद तीसरे नंबर पर हुआ करती थी।

सोयाबीन फसल को लेकर जागरूकता की कमी :
जिले में सोयाबीन फसल को लेकर किसानों में जागरूकता की कमी है। इस कारण भी रकबा कम हो रहा है। बीते चार साल पहले किसानों को सोयाबीन की खेती ऊंची क्यारी (मांदा) एवं नाली विधि से करने जोर दिया गया था। इसे लेकर किसानों को जागरूक किया गया। इसमें प्रमुख रूप से कवर्धा ब्लॉक शामिल है। खास बात यह है कि इस विधि से ज्यादा उत्पादन भी हुआ। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा परिवर्तित उन्नत सीड ड्रिल के माध्यम से बुवाई करने से न सिर्फ ऊंची (मांदा) एवं नाली का निर्माण होता है, बल्कि इसके साथ ही सोयाबीन के बीच की बुआई भी होती है। इस यंत्र से बुआई करने पर मांदा में चार-पांच पंक्तियों में सोयाबीन की बुआई होती है। इन चार पंक्तियों में शुरु की दो पंक्तियों के मध्य की दूरी 30 सेमी व दूसरी और तीसरी पंक्ति के मध्य 60 सेमी की दूरी होती है। तीसरी और चौथी पंक्ति के मध्य 30 सेमी की दूरी रखा जाता है।

चना व सोयाबीन की ही फसल होती थी :
वहीं धान की बात करे तो किसानों को प्रति क्विंटल छत्तीसगढ़ शासन की ओर 3100 रुपये की दर से धान मूल्य प्राप्त हो रहा है। इसमें समर्थन मूल्य के अतिरिक्त राशि बोनस के रूप में राज्य सरकार दे रही है। ऐसे में किसान धान की जगह अन्य फसल लें। हालांकि बड़ी संख्या में किसान अन्य फसल भी ले रहे हैं जैसे अरहर, गन्ना और सब्जी। इस खरीफ सीजन में लगभग मक्का 8550 हेक्टेयर में लिए जाने का अनुमान है। वहीं अरहर, उड़द, मूंगफली का भी अनुमान है। सोयाबीन की फसल का रकबा साल दर साल कम होते जा रहा है, जबकि दो दशक पूर्व तक जिले में सबसे अधिक चना व सोयाबीन की ही फसल होती थी।

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