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छत्तीसगढ़ में कृषि वैज्ञानिक डा नौगरैया को क्यों कहा जाता है बैंबूमेन, पढ़ने के लिए करें क्लिक

बांस पौधरोपण के लिए सेवा सलाहकार के रुप में हैं कार्यरत, प्रदेश के कई ब्लांक में लाखों बांस का करा चुके है

रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में कार्यरत रहे प्रोफेसर/प्रमुख वैज्ञानिक डा. महेंद्र नाथ नौगरैया को उनके बांस के प्रति हुए कार्य के बाद उन्हे बैंबूमैन के नाम से संबोधित किया जाने लगा। विभाग में पढ़ाई कर रहे शोध छात्रों की माने तो डा महेंद्र बांस मिशन के तहत तीस से अधिक कृषि विज्ञान केंद्रों में छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त प्रमुख बांस की प्रजातियों को नई पहचान दी। इसी तरह से आसपास के किसानों को बांस से आय में बढोत्तरी हो, इसके लिए लगातार नवाचार के माध्यम से प्रर्दशन भी ब्लाकों में किया गया।

बांस के प्रति उनका लगाव कुछ इस तरह से रहा है कि डा. नौगरैया ने बांस पर सरल हिन्दी भाषा पुस्तक भी लिखी है। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में शोध पत्र अभिभाषित किये हैं। बांस लिखे शोध पत्र देश विदेश में शोध के तौर पर छात्रों को पढ़ाए जाते है। डा. नौगरैया सेवानिवृत्त के बाद भी छत्तीसगढ़ में बांस वृक्षारोपण के लिए सेवा सलाहकार के रुप में कार्यरत हैं। लाखों बांस पौधारोपण करा चुके हैं।
बड़ी बांस नर्सरी किया गया स्थापित
जहां पर किसानों को बांस की उपज पर ट्रेनिंग दी गई। जिससे बांस के पौध तैयार कर इसकी बिक्री के लिए केंद्र स्थापित किया गया। इसी प्रकार चार कृषि विज्ञान केंद्रों रायपुर, धमतरी, कांकेर व कोंडागांव बृहद स्तर पर बड़ी बांस नर्सरी स्थापित करने का कार्य किया गया। जिसमें एक एकड़ में बैंबूसिटम और एक बीघा में ग्रीननेट हाउस बनाये गए। अब इन चारों नर्सरियों में प्रति वर्ष हजारों की संख्या में बांस पौधे तैयार कर पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश में उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
टिश्यू कल्चर तकनीकी से हजारों बांस के पौधे तैयार हुए
इसी प्रकार दो उन्नत टिश्यू कल्चर लेव इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के रायपुर कालेज व जगलपुर कालेज में विकसित कराई गई। जहां पर एक एकड़ क्षेत्र में वर्षा वन अनुसंधान संस्थान, जोरहाट असाम से प्रमाणित पंजीकृत बांस प्रजातियों – बंबुसा न्युटन, बं.बल्कुआ, बं.टुल्डा के उच्च गुणवत्ता वाले क्लोनल जर्मप्लाज्म लाकर उगाये गए। इन्हीं मातृ बांस पौधौ से टिश्यू कल्चर तकनीकी से हजारों की संख्या में बांस के पौध तैयार हो रहे हैं।
2.5 करोड़ रुपये से ग्रांट हासिल की
इन सब सुविधाओं को विकसित करने व छत्तीसगढ़ में बांस उत्पादन व बांस आधारित जीवकोपार्जन बढ़ाने के लिए आइजीकेवी रायपुर में कार्यरत प्रोफेसर/प्रमुख वैज्ञानिक डा. महेंद्र नाथ नौगरैया का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। डा. नौगरैया ने बांस पर शोध अध्ययन, प्रसार- विस्तार और विकास कार्य कई वर्षो तक विभिन्न बांस परियोजनाओं – आई.सी.ए.आर, एन.डब्लु.एल.डी., जीसीकास्ट, एन.बी.एम. /आर.एन.बी.एम. आदि संस्थाओं से लगभग 2.5 करोड़ रुपये से ग्रांट हासिल की।

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