Featuredजागरूक करने जैसे कार्यताजा खबरसमाचार

‘उग हो सुरुज देव’ छठ गीत ने शारदा को घर-घर में दिलाई थी पहचान

व्यवसाय खबर पद्म भूषण से सम्मानित लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं

नई दिल्ली। संगीत की दुनिया में शोकगीत। उग हे सुरुजदेव, आपकी उपासिका नहीं रहीं। गाते-गाते रुला गईं। स्वर कोकिला शारदा सिन्हा के जाते ही सुर, ताल, लय और राग सब जैसे रो रहे हैं। छठ गीतों की पर्याय रहीं शारदा जी नहाय-खाय के दिन ही क्या गईं, चहुंओर पहले से सुने-सुनाए जा रहे उनके गीत उनकी अनुपस्थिति का अहसास और गाढ़ा करने लगे। वे लोक में इस तरह रच बस गई हैं, नेपथ्य में उनके गीतों के बिना सूर्यदेव को अर्घ्य कभी पूरा नहीं होगा। बिहार के सुपौल जिले के हुलास में एक अक्टूबर 1952 को जन्मी शारदा सिन्हा की ससुराल बेगूसराय जिले के सिहमा गांव में थी। वैसे तो उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में भी गाने गाए, लेकिन पहचान भोजपुरी व मैथिली लोक गायिका के रूप में अधिक थी। उनके छठ गीत बेहद लोकप्रिय रहे हैं। 1974 में उन्होंने पहली बार भोजपुरी गीत गाया। 1978 में उनका छठ गीत ‘उग हो सुरुज देव’ रिकार्ड किया गया। इसके बाद शारदा सिन्हा का नाम घर-घर में प्रसिद्ध हो गया। बिहार कोकिला के नाम से प्रसिद्ध पद्म भूषण से सम्मानित लोक गायिका शारदा सिन्हा का 72 वर्ष की उम्र में पांच नवबंर मंगलवार रात 9.20 बजे दिल्ली के एम्स में निधन हो गया
मम्मी छठ में नया गीत लेकर आना चाहती थीं
इसके लिए तैयारी कर रही थीं, यह कहते-कहते शारदा सिन्हा के पुत्र अंशुमान सिन्हा भावुक हो जाते हैं। दिल्ली एम्स में भर्ती मम्मी की सेहत को लेकर काफी चिंतित थे। वे बात नहीं कर पा रहे थे। हालांकि, इसके तुरंत बाद ही उनके द्वारा गाए छठ गीत ‘दुखवा मिटाईं छठी मैया, रउए आसरा हमार’ का वीडियो एम्स से जारी किया गया। अंशुमान सिन्हा ने एक्स के अलावा यूट्यूब पर छठ गीत का वीडियो जारी किया। देखते-देखते यह गीत यूट्यूब पर वायरल हो गया।
छह वर्षों से वह ब्लड कैंसर से पीड़ित थीं
पिछले छह वर्षों से वह ब्लड कैंसर से पीड़ित थीं। तबीयत बिगड़ने पर 26 अक्टूबर को उन्हें एम्स में कैंसर सेंटर के मेडिकल आंकोलोजी वार्ड में भर्ती कराया गया था, जहां उन्हें आक्सीजन सपोर्ट भी दिया गया। हालत में सुधार होने के बाद उन्हें वार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन सोमवार देर शाम उनकी तबीयत फिर बिगड़ गई और दोबारा आइसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। एम्स ने बयान जारी कर कहा है कि रेफ्रेक्टरी शाक व सेप्टिसीमिया के कारण उनका निधन हुआ। बुधवार को उनका पार्थिव शरीर विमान से पटना ले जाया गया, वहीं उनका अंतिम संस्कार होगा। इसके पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एम्स निदेशक डा. एम श्रीनिवास से फोन पर बातचीत कर उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली थी। उन्होंने गायिका के बेटे से भी बात कर ढांढस बंधाया था।
ससुराल बेगूसराय जिले के सिहमा गांव में थी
नहाय खाय के साथ मंगलवार को छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है और छठी मैया की महिमा बखान करते शारदा सिन्हा के गाए गीत इस समय चहुंओर बज रहे हैं। ऐसे समय में उनके निधन की खबर ने लोगों को व्यथित कर दिया है। हाल ही में उनके पति का निधन हुआ था। इसके पहले इसी वर्ष दोनों ने अपनी शादी की 54वीं वर्षगांठ मनाई थी। लोक गायिकी में उल्लेखनीय योगदान के लिए शारदा सिन्हा को सांस्कृतिक राजदूत भी कहा जाता था। लगभग पांच दशक लंबे संगीत करियर में अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले। बिहार सरकार ने भी उन्हें सम्मानित किया। उन्हें वर्ष 1991 में पद्मश्री और वर्ष 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
उनके व्यक्तित्व में कई भाषाओं का समाहार था
शारदा सिन्हा के व्यक्तित्व में कई भाषाओं का समाहार था। मैथिली, भोजपुरी, मगही तीनों भाषाओं को उन्होंने साधा और गाया। यही कारण है कि भौगोलिक सीमाओं को लांघ व्यापक क्षेत्र में उनकी व्याप्ति हुई। विद्यापति के गीत-जय-जय भैरवी असुर भयावनि हो या जगदंबा घर में दीयरा बार अइनीं हो या केलवा के पात पर उग हे सुरुजदेव…दशार्ते हैं कि भक्ति रस उनके पोर-पोर में बसा था। सरस्वती उनके कंठ में वास करती थी। मैथिल संस्कृति में पगी शारदा जी जब भोजपुरी में गाती थीं तो नहीं लगता, वह भोजपुरी भाषी नहीं हैं। मुंह में पान की लाली, सामने हारमोनियम पर थिरकतीं अंगुलियां और कंठ से गूंजते गीत उनके संपूर्ण व्यक्तित्व को दिव्य आभा प्रदान करते थे।
मैंने प्यार किया के गीत-कहे तो से सजना..
मैंने प्यार किया के गीत-कहे तो से सजना…काफी लोकप्रिय हुआ था। इसके अलावा गैंग आफ वासेपुर का गीत-तार बिजली से पतले हमार पिया, चारफुटिया छोकरे जैसे कई फिल्मों में उन्होंने गीत गाए। जैसी सादगीपूर्ण जिंदगी, वैसे ही उनके गीत। कहीं भी अश्लीलता नहीं। गाईं तो बस गाती ही चली गईं। भोजपुरी गायक की माने तो वह संगीत की दुनिया की साक्षात सरस्वती थीं। उन्होंने जो भी गाया, काफी साफ-सुथरा गाया। छठ पूजा के अवसर पर उनका विदा होना ऐसा लग रहा है जैसे छठी मईया ने अपनी इस बेटी को अपनी गोद में ले लिया है।
छठ में अपनी ससुराल सिहम जरूर आया करती थीं
शारदा सिन्हा के निधन की खबर मिलते ही संपूर्ण क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। वह पटना में भले ही रहती थीं पर उनका लगाव अपनी ससुराल मटिहानी प्रखंड के सिहमा गांव से बहुत अधिक था। दो साल पूर्व तक वह हर बार छठ में अपनी ससुराल सिहम जरूर आया करती थीं। इधर दो वर्षों से स्वास्थ्य कारणों से वह छठ में नहीं आई थीं। उनके देवर जय किशन सिंह उर्फ नितो दा बताते हैं कि सेलिब्रिटी होने के बाद भी गांव से उनका कम लगाव नहीं था। उन्होंने बताया कि शारदा सिन्हा के पति ब्रजकिशोर सिंह हम तीनों भाई में सबसे बड़े थे। नंदकिशोर सिंह और सबसे छोटा मैं था। उन्होंने बताया कि 1965 के आसपास उनका विवाह तत्कालीन सहरसा जिला के हुलास गांव निवासी सुखदेव ठाकुर की पुत्री शारदा सिन्हा से हुआ। वह मुजफ्फरपुर में पढ़ रही थीं। ब्रजकिशोर सिंह समस्तीपुर में ही प्राइवेट कालेज चलाया करते थे। शादी समस्तीपुर में ही संपन्न हुई थी। ….स्रोत इंटरनेट

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *