-न मंदिर न कोई प्रतिमा फिर भी निरई मां के दर्शन के लिए श्रद्धालु की होती है भीड़
–पैरी-सोंढूर नदी के बीच पहाड़ी पर स्थित
-चैत्र नवरात्रि के पहले ही खुलता है
-सिंदूर, सुहाग सामग्री नहीं चढ़ाई जाती
-अशुद्ध मन से जाने पर मधुमक्खियां करती हैं घायल
रायपुर। प्रदेश के गरियाबंद जिले में स्थित निरई माता का दरबार एक अनोखा दैवीय स्थान है। यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार, चैत्र नवरात्रि के पहले ही खुलता है और वह भी केवल पांच घंटों के लिए। यहां पारंपरिक रूप से मंदिर नहीं बना है और न ही यहां कोई प्रतिमा है, फिर भी श्रद्धालुओं की आस्था कम नहीं है। आसपास के जिलों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है।

इतिहास लगभग 200 साल पुराना
पूजा का मुख्य समय सुबह 4 से 9 बजे तक ही होता है। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है। निरई माता का स्थल जिला मुख्यालय गरियाबंद से लगभग 12 किलोमीटर दूर पैरी और सोंढूर नदी के बीच निरई गांव की पहाड़ी पर स्थित है। इस दिन जातरा भी निकला जाता है।
महिलाएं प्रसाद भी नहीं खा सकती
अन्य देवी मंदिरों में जहां सिंदूर, सुहाग सामग्री चढ़ाया जाता है। वहीं इस मंदिर में यह सामग्री चढ़ाना मना है। यहां सिर्फ नारियल और अगरबत्ती से ही देवी मां की पूजा की जाती है । मंदिर में केवल पुरुषों को ही प्रवेश और पूजा करने की अनुमति है। महिलाओं का मंदिर में प्रवेश पूरी तरह से वर्जित है, यहां तक कि महिलाएं मंदिर का प्रसाद भी नहीं खा सकतीं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से उनके साथ कोई अनहोनी हो सकती है।

नौ दिन बगैर तेल जलता है ज्योत
सबसे बड़ा रहस्य इस मंदिर में हर साल स्वयं प्रज्वलित होने वाली ज्योति है। ग्रामीणों के अनुसार चैत्र नवरात्रि के दौरान बिना तेल के नौ दिनों तक यह ज्योति स्वयं जलती रहती है। विज्ञान के लिए यह आज भी एक रहस्य है, लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह देवी का चमत्कार है। ग्रामीण और श्रद्धालु इसे माता निरई का चमत्कार मानते हैं। इस अलौंकिक घटना की वजह से ही इस मंदिर में माता के प्रति गहरी श्रद्धा और आस्था देखने को मिलती है।
दरबार में अशुद्ध मन से नहीं पहुंच सकते
एक मान्यता यह भी है कि निरई माता का दर्शन पवित्र मन से किया जाता है और यदि कोई व्यक्ति शराब के नशे में या अशुद्ध मन से दरबार में प्रवेश करने की कोशिश करता है, तो उसे मधुमक्खियों का सामना करना पड़ता है और वह मंदिर तक नहीं पहुंच पाता।