– वाराणसी में संघ प्रमुख मोहन भागवत का मुसलमानों के संबंध में दिया गया एक बयान काफी चर्चा में
– राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष में समाज के प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ जोड़ने पर कर रहा कार्य।
– संघ सूत्रों का मानना है कि बदलती डेमोग्राफी से अब देश की स्थितियां बहुत कठिन होती जा रही हैं।
संजय प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी में संघ प्रमुख मोहन भागवत का मुसलमानों के संबंध में दिया गया एक बयान काफी चर्चा में है। मोहन भागवत ने कहा था कि संघ की शाखाओं में राष्ट्रवादी मुसलमानों का स्वागत है। संघ प्रमुख का मानना है कि भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों को भारत माता की जय बोलने व भगवा ध्वज से परहेज नहीं होना चाहिए।
मुस्लिमों के इस वर्ग को साथ लाना ही बुद्धिमानी है

देश में वक्फ संशोधन बिल पारित होने के बाद संघ प्रमुख की ओर से मुसलमानों को दिया गया यह संदेश बहुत महत्वपूर्ण है और बड़ा नीतिगत बदलाव भी। अभी भाजपा में जितने मुस्लिम नेता हैं वे सीधे-सीधे संघ से नहीं जुड़े हैं। इसीलिए शायद संगठन को अपने अल्पसंख्यक मोर्चे का अध्यक्ष इंद्रेश कुमार को बनाना पड़ा है। यदि मोहन भागवत का यह प्रयोग सफल रहा तो आगे चलकर संगठन के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख के पद पर कोई मुसलमान भी बैठ सकेगा।इस नीतिगत बदलाव का मतलब यह भी है कि शायद अब संघ को लगता है कि सिर्फ हिंदुओं की ही बात करने से न तो संगठन मजबूत होगा और न ही देश।
संघ सूत्रों का भी मानना है कि वैसे भी बदलती डेमोग्राफी से अब देश की स्थितियां बहुत कठिन होती जा रही हैं। ऐसे में मुस्लिमों के इस वर्ग को साथ लाना ही बुद्धिमानी है। वैसे भी भाजपा ने पहले ही मुसलमानों में पसमांदा वर्ग को खोज कर उसके हित की बात करनी शुरू कर दी है। इधर, अब वक्फ संशोधन कानून भी पास किया गया है। कहा गया है कि ये कानून मुसलमानों के इसी वर्ग के लिए लाया गया है, ताकि उनका आर्थिक उत्थान और सामाजिक विकास हो सके। इस रास्ते हो सकता है कि संघ का ये प्रयास मुसलमानों से जुड़े कुछ कानूनों जैसे तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित यूसीसी से पैदा हुए नकारात्मक नैरेटिव को तोड़ने में भी सहूलियत दे।

संघ प्रमुख का यह मध्यमार्गी बयान संतों को पसंद नहीं आया
पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिए गए कुछ बयानों को भी इस संदर्भ में देखना और समझना होगा। संघ प्रमुख ने ही कुछ दिनों पूर्व यह बयान दिया की हर मस्जिद में मंदिर क्यों खोजना, इससे सांप्रदायिक सौहार्द को चोट पहुंचती है। हालांकि संघ प्रमुख का यह मध्यमार्गी बयान संतों को पसंद नहीं आया और इस पर बड़ी आलोचना भी हुई। प्रमुख संत रामभद्राचार्य जी ने तो यहां तक कह दिया कि संत समाज संघ प्रमुख का अनुचर नहीं है कि वह उनकी बात मानेगा। तब संघ के कई जिम्मेदारों को मैदान में उतरकर सफाई भी देनी पड़ी थी। इसके पूर्व संघ प्रमुख ने ही कहा था कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति सनातनी है, चाहे वह मुसलमान ही क्यों न हो। यह बयान और इससे जुड़े अन्य सभी बयान संघ के बदलते रुख का संदेश पहले ही दे चुके हैं। अब बनारस में भी संघ प्रमुख ने स्वयंसेवकों के सामने यह बात कह कर एक बड़ी लकीर खींच दी है। ऐसे में अगर संघ प्रमुख के बयान से प्रभावित होकर मुस्लिमों ने संघ की शाखाओं की ओर रुख कर लिया तो यह देश में एक बड़ा बदलाव होगा। साथ ही यह हिंदू-मुस्लिम के नाम पर राजनीति करने वाली विपक्ष की पार्टियों के मुंह पर बड़ा तमाचा भी होगा।
पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत वाराणसी के दौरे पर रहे। वे महानगर के मलदहिया के लाजपत नगर पार्क की शाखा पर पहुंचे और शाखा के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। वहीं उन्होंने स्वयंसेवकों के कुछ सवालों के भी जवाब दिए। इस दौरान एक सवाल आया कि क्या आरएसएस की शाखा में कोई भी आ सकता है। इस पर संघ प्रमुख ने कहा कि शाखा में मत, संप्रदाय, जाति, पंथ और भाषा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। संघ प्रमुख ने एक बात और स्पष्ट करते हुए कहा कि जो भी भारत माता की जय बोल सकता है, उसके शाखा आने पर कोई मनाही नहीं है, संघ की शाखा में सभी का स्वागत है, बस उन लोगों को छोड़कर जो खुद को औरंगजेब का वंशज मानते हैं। दरअसल उस स्वयंसेवक का सवाल था कि क्या हम अपने मुस्लिम पड़ोसियों को भी शाखा में ला सकते हैं। इसी के जवाब में संघ प्रमुख ने कहा, ‘संघ की शाखा के दरवाजे उन सभी के लिए खुले हैं, जो भारत माता और भगवा ध्वज का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि आरएसएस में पूजा पद्धति के आधार पर भेदभाव का कोई विचार नहीं है। ऐसे में उन लोगों को छोड़कर वे सभी यहां आ सकते हैं, जो खुद को औरंगजेब का वंशज मानते हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि हमारी जाति, पंथ, संप्रदाय अलग हो सकते हैं, लेकिन संस्कृति तो एक ही है।मोहन भागवत ने इस दौरान अखंड भारत की अवधारणा पर भी बात की। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि अखंड भारत का विचार व्यवहारिक नहीं है, लेकिन सच यह है कि ऐसा संभव है। आज सिंध प्रांत की हालत देखिए। भारत से जिन हिस्सों को अलग किया गया था, उनके साथ आज भेदभाव की स्थिति है।
हिंदुओं में जाति खोजते हैं, पर पसमांदा की पैरवी से दिक्कत
संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान से मुसलमान वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टियों में बेचैनी हो सकती है। क्योंकि वे हिंदुओं में तो जात-पात की बात करते हैं, लेकिन जब मुसलमानों में पसमांदा की बात की जाती है तो वे इसे मुसलमानों को बांटने की राजनीति करार देते हैं। अभी पिछले ही दिनों जब संसद में वक्फ संशोधन बिल पास हो रहा था तो उस पर चर्चा के दौरान सरकार ने कहा कि यह बिल पसमादा मुसलमानों, मुस्लिम गरीबों और बेवाओं के लिए फायदेमंद होगा तो इस बिल का यह कहकर विरोध किया जा रहा था कि सरकार मुसलमानों में विभाजन की बात कर रही है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी वक्फ कानून के विरोध में कुछ इसी तरह की बात करते हैं। वह कहते हैं कि सरकार मुसलमान में बंटवारा करके उनके बीच का भाईचारा खत्म करना चाहती है। पर उन्हें यह बात कौन समझाए कि जब वे हिंदुओं में सिर्फ ओबीसी की बात करते हैं तो वे कहां से हिंदुओं को जोड़ने या हिंदू एकता की बात करते हैं। ऐसे में पसमांदा मुसलमानों की पैरवी अगर केंद्र सरकार का मास्टर स्ट्रोक है तो मुसलमान को संघ की शाखाओं में आने का निमंत्रण देकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी मास्टर स्ट्रोक मारा है। अब देखना यह है कि इसका असर कहां तक और कितना होता है।

अपनी दुर्दशा के लिए मुस्लिम खुद ही जिम्मेदार-इफ्तेखार
मुस्लिम नेता ख्वाजा इफ्तिखार ने कहना है कि अपनी दुर्दशा के लिए देश के मुसलमान खुद ही जिम्मेदार हैं। उन्होंने इतना मुसलमान-मुसलमान कर रखा है कि प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू भी संगठित हो गए हैं। अब हिंदू भी अपने आप को पहचानने लगे हैं। उन्होंने कहा कि जब भी भाजपा ने मुसलमानों को टिकट दिया तो मुस्लिम नेताओं ने कहा कि उनकी जमानतें जब्त करा देनी हैं, और जमानतें जब्त भी हुईं। पर, नुकसान किसका हुआ, मुसलमानों ही का तो। हारा कौन, मुसलमान ही। उनका कहना है कि ये वही हिंदू हैं जिन्होंने कई वर्षों तक कांग्रेस को हराया, भाजपा को हराया। और यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेई को भी हराया। लेकिन आपने उनको नहीं समझा। वे तो समानता की बात करते हैं किंतु आपने मुसलमान-मुसलमान करके खाई पैदा कर दी। आपके इसी सोच के चलते हिंदू और मुसलमानों के बीच की खाई और बढ़ती चली गई। नतीजा यह हुआ कि 2024 के चुनाव में अपने एड़ी-,चोटी का जोर लगा लिया पर नरेंद्र मोदी की सरकार फिर बन गई। उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी संघ की पैदाइश हैं और वे कट्टर हिंदू हैं। और वो आपकी भाषा में जवाब देना भी जानते हैं। इसलिए अब मुस्लिमों को टकराव की भाषा का नहीं जुड़ाव की भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए।
एआईएमआईएम चीफ ओवैसी का जेएसआर और जीबीएम
एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने लोस में वक्फ संशोधन बिल का विरोध करते हुए एक नई शब्दावली का प्रयोग किया। उन्होंने चर्चा के दौरान जय श्री राम की जगह जेएसआर शब्द का इस्तेमाल किया। यानी वे इस हद तक श्री राम से नफरत करते हैं कि वे पूरा जय श्री राम भी नहीं बोल सकते। ओवैसी चर्चा के दौरान कह रहे थे कि अगर कोई जेएसआर नहीं कहेगा तो क्या उसे आप हिंदू नहीं कहेंगे। वे वक्फ करने वाले के लिए 5 साल प्रैक्टिसिंग मुसलमान होने की शर्त का विरोध कर रहे थे। इसके अलावा काफी दिनों पहले जब पार्टी प्रवक्ता वारिस पठान ने एक टीवी चैनल पर गणपति बप्पा मोरया का नारा लगा दिया था तब उन्हें काफी दिनों तक टीवी डिबेट में आने से पार्टी ने रोक दिया था। उसके बाद से पार्टी ने गणपति बप्पा मोरया का भी शार्ट फार्म जीबीएम कर दिया था। पार्टी के नेता अब इसी बदली शब्दावली का प्रयोग करते हैं। यानी ओवैसी की निगाह ये दोनों नारे हराम हैं।