एम्स भोपाल के फिजियोलाजी विभाग के डा. वरुण मल्होत्रा का अध्ययन
भोपाल कपालभाति प्राणायाम हृदय को मजबूत कर उसके बीमार होने का खतरा घटा देता है। योग के सदियों पुराने इस निष्कर्ष पर भोपाल एम्स ने एक शोध से मुहर भी लगा दी है। करीब चार वर्ष तक चले शोध में सामने आया है कि कपालभाति के अभ्यास से दिल धड़कने की दर संतुलित होती है और मस्तिष्क अधिक शांत व सक्रिय होता है। व्यक्ति तारोताजा महसूस करता है। उसमें हृदयाघात की आशंका कम हो जाती है। कोरोना महामारी के दौरान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों पर इस तरह के प्रयोग की आवश्यकता महसूस हुई थी। एम्स की एथिकल कमेटी और रिसर्च रिव्यू बोर्ड ने इस शोध को अनुमति दी।
2020 में इस शोध परियोजना पर काम शुरू किया
इसके बाद भोपाल एम्स के फिजियोलाजी विभाग के डा. वरुण मल्होत्रा ने वर्ष 2020 में इस शोध परियोजना पर काम शुरू किया। उन्होंने अलग-अलग पृष्ठभूमि के 30 व्यक्तियों को चुना। न्यूरलचेक उपकरण की सहायता से उनके हृदय और मस्तिष्क की पूर्व स्थिति, कपालभाति अभ्यास के दौरान और अभ्यास के बाद की स्थिति को दर्ज किया गया। डा. वरुण मल्होत्रा ने बताया कि शोध के दौरान इलेक्ट्रोएन्सोफेलोग्राम (ईईजी) में पाया गया कि कपालभाति के बाद रक्त का प्रवाह मस्तिष्क की ओर बढ़ गया। इससे धमनियों में वीटा-गामा वेव बढ़ा। वेगस नर्व सक्रिय हुई। दिल धड़कने की दर संतुलित हुई। यह बदलाव हृदय को अधिक स्वस्थ रखने में बेहद कारगर है। इस क्रिया से मस्तिष्क में आक्सीजन की पहुंच बढ़ी। इससे उसका चौकन्नापन सामान्य की तुलना में अधिक हुआ है। यह शोध मैमनसिंह मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। डा. वरुण मल्होत्रा को इस शोध के लिए स्कालर रिसर्च एक्सीलेंस पुरस्कार भी दिया गया।
हृदय रोगियों को विशेषज्ञ निगरानी की जरूरत
डा. वरुण मल्होत्रा का कहना था कि हृदय रोग हो जाने के बाद उसको सामान्य कर पाना मुश्किल है, लेकिन स्वस्थ व्यक्ति कपालभाति के नियमित अभ्यास से हृदय रोगों की आशंका कम कर सकता है। उच्च रक्तचाप और हृदय रोगियों को विशेषज्ञ की सलाह और निगरानी में ही कपालभाति करना चाहिए। बता दें, कपालभाति में पद्मासन में बैठकर दोनों हाथों से चित्त मुद्रा बनाई जाती है। गहरी सांस अंदर की ओर लेते हुए झटके से सांस छोड़ी जाती है। इस दौरान पेट को अंदर की ओर खींचा जाता है।
मरीजों को दवा के साथ योग की भी सलाह
एम्स प्रबंधन का कहना है कि मरीजों को ऐलोपैथी दवाओं के साथ योग की भी सलाह दी जा रही है। इसके लिए फिजियोलाजी विभाग में ही एक योग विंग बना दिया गया है।
डा. मल्होत्रा और उनकी टीम का अध्ययन पारंपरिक प्रथाओं जैसे कपालभाति के प्रभाव को उजागर करता है। हम यहां ऐसा शोध वातावरण बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो निरंतर नवाचार और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करता है।
- प्रो. डा. अजय सिंह, कार्यपालक निदेशक, एम्स भोपाल
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