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हमारी शान के परचम पिताजी, कभी रहबर, कभी हमदम पिताजी

  • पिता को समर्पित साहित्य सृजन संस्थान की काव्य गोष्ठी

रायपुर। साहित्य सृजन संस्थान के तत्वावधान में सिविल लाइंस स्थित वृंदावन हाल में पितृ दिवस पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अस्थि रोग विशेषज्ञ डा. अभिषेक तिवारी रहे और अध्यक्षता वीर अजीत शर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि साहित्यकार प्रदीप जोशी और राजकुमार धर द्विवेदी रहे। कार्यक्रम का संचालन उमेश कुमार सोनी ‘नयन’ और नेहा त्रिवेदी ने किया। इस दौरान पिता की संतान के प्रति आत्मीयता, उसके त्याग और संघर्ष को दर्शाती एक से बढ़कर एक कविताएं साहित्यकारों ने पढ़ीं।

कार्यक्रम में डा. गीता विश्वकर्मा ‘नेह’ ने पढ़ा-
हमारी शान के परचम पिताजी,
कभी रहबर, कभी हमदम पिताजी।
हरिक फरमाइशें पूरी करें वो,
कहां कहते बजट है कम पिताजी।

विशिष्ट अतिथि साहित्यकार राजकुमार धर द्विवेदी

डा. रामेश्वरी दास ने सुनाया-
एक पिता हैं जनक समान,
चार सुता उनकी पहचान।
एक बेटा उनका धीर वीर,
वह तेजस्वी है और गंभीर।

उमेश कुमार सोनी ‘नयन’ ने पढ़ा-
ना दिल में कोई पश्चाताप होता है,
ना चेहरे पर कोई संताप होता है l
बच्चों को बनाने में मिट जाए खुद,
जहां में वो सिर्फ एक बाप होता है।

गजलकार आरडी अहिरवार ने पढ़ा-
मौजूदगी में आपकी, चिंता से मुक्त थे,
दुख-दर्द जिंदगी से हमारी विलुप्त थे।
पाबंद आप वक्त के, स्वभाव शांत-शांत,
कोमल थे दिल से और इरादे सशक्त थे।

ममता खरे ‘मधु’ ने पढ़ा-
ऊंच-नीच का फर्क बताते हैं पिता,
भ्रमित हुये तो राह दिखाते हैं पिता।
खुद पथरीली राहों पर चलकर,
जीने का मर्म सिखाते हैं पिता।

शशिकिरण वर्मा ने सुनाया-
देखा जब जलता कोयला,
काठ का जीवन याद आया,
वृक्ष का समर्पण याद आया।
ठूंठ बनकर तन जलाया,
तन जला कर कोयला बना,
कोयला बन कर भी जला।

शिवशंकर गुप्ता ने पढ़ा-
जीते जी मैं समझ न पाया मेरे पिता,
समझा धीरे-धीरे जब जल गई चिता।
क्या उपकार गिनाऊं अब मेरे पिता,
सारे सुख तो तुम दे गये मेरे पिता।

1 Comment

  1. राजकुमार धर द्विवेदी says:

    बहुत शानदार

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