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साक्षात्कार: मुंबई में एक पान की दुकान के बदौलत ही तय हुआ, उद्योगपति तक का सफर : सेठ पन्नालाल जायसवाल

पन्नालाल बचपन से ही बड़े ही शांत प्रिय के साथ होशियार थे। कुछ अलग करने की सोच रखने वाले श्री पन्नालाल का मन पिता के कारोबार में नहीं लगता था,

संघर्षगाथा

मां का आशीर्वाद और पान की दुकान ने दी जिंदगी को दिशा:उद्योगपति पन्नालाल जायसवाल

महज चौदह वर्ष की आयु में, जब बच्चे जीवन को समझने की शुरुआत करते हैं, उस उम्र में उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल ने एक अंजान शहर की ओर कदम बढ़ाए। न कोई ठिकाना था, न रास्ते की जानकारी — न ये पता था कि कहां जाना है, क्या काम मिलेगा, बस मन में एक ही बात थी: कुछ अलग करना है, कुछ बड़ा बनना है। उत्तर प्रदेश से मुंबई पहुँचे उद्योगपति पन्नालाल जी ने जीवन की कठोर सच्चाइयों से सीधा सामना किया। उनके पास डिग्रियां नहीं थीं, कोई बड़ा सहारा नहीं था, लेकिन उनके पास था — संघर्ष का हौसला और ईमानदारी की पूंजी। जीविका की तलाश उन्हें पान की दुकान तक ले आई। यही दुकान उनके सपनों की शुरुआत बनी। शुरुआत में उन्होंने पान लगाना सीखा, ग्राहकों से व्यवहार करना सीखा, और मेहनत को आदत बना लिया। दिन-रात की लगन ने धीरे-धीरे उन्हें न केवल इस क्षेत्र में पहचान दिलाई, बल्कि एक सफल उद्योगपति के रूप में स्थापित कर दिया। श्री पन्नालाल जायसवाल की यह कहानी बताती है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। अगर दृष्टिकोण बड़ा हो, और मेहनत सच्ची, तो पान की दुकान भी किसी की किस्मत बदल सकती है।

व्यवसाय खबर डॉट कॉम (vyavasaykhabar.com) से विशेष बातचीत के दौरान उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल ने अपने संघर्षमय सफर को याद करते हुए भावुक स्वर में कहा:

“आज मैं जिस मुकाम पर हूं, उसका श्रेय अगर किसी को देना चाहूं, तो वह हैं – मेरी मां स्वर्गीय कौशल्या देवी का निस्वार्थ आशीर्वाद और मुंबई की जोगेश्वरी महाकाली गुफा के पास की वह छोटी सी पान की दुकान, जिसने मेरी ज़िंदगी की नींव रखी।”

उन्होंने बताया कि करीब चार दशक पहले, जब उन्होंने उस साधारण सी दुकान से शुरुआत की थी, तब उनके पास न संसाधन थे, न अनुभव। लेकिन मन में था बस एक विश्वास – मेहनत के बल पर कुछ अलग कर दिखाना है।“वह दुकान मेरे लिए एक व्यवसायिक केंद्र नहीं, बल्कि जीवन की पहली पाठशाला थी,” – श्री जायसवाल ने कहा “एक ग्राहक जब रोज़ आपकी दुकान पर लौटकर आता है, तो वह सिर्फ पान नहीं खरीदता, वह आपकी ईमानदारी खरीदता है, आपके व्यवहार का सम्मान करता है,” – उन्होंने मुस्कराते हुए कहा। श्री जायसवाल के लिए यह दुकान सिर्फ जीविका का जरिया नहीं, बल्कि संघर्ष, सिख और सफलता का प्रतीक बन गई। और आज जब वे एक सफल उद्योगपति के रूप में पहचाने जाते हैं, तो वह अपने अतीत को नहीं भूलते, बल्कि गर्व से कहते हैं: “मेरे जीवन की असली पूंजी मेरी मां का आशीर्वाद और वो पान की दुकान है, जिसने मुझे सिखाया कि ईमानदारी से किया गया हर छोटा काम, एक दिन बड़ा इतिहास रच सकता है।”

संघर्ष से सफलता तक: दूसरों को भी आगे बढ़ाने वाले उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल

जौनपुर (उत्तर प्रदेश) की उर्वर भूमि से निकलकर मुंबई जैसे महानगर में अपनी पहचान बनाना किसी आसान सफर की कहानी नहीं होती। लेकिन जब मन में कुछ अलग करने का जुनून, और भीतर कर्मयोग का तेज हो, तो दूरी और हालात कोई मायने नहीं रखते। ऐसा ही प्रेरक व्यक्तित्व हैं — उद्योगपति, समाजसेवी और धार्मिक श्रद्धावान श्री पन्नालाल जायसवाल जी, जिनकी कहानी सिर्फ उनकी नहीं, हजारों लोगों के आत्मविश्वास की कहानी है। महज एक 14 वर्षीय बालक जब 1400 किलोमीटर की यात्रा कर मुंबई पहुंचा, तब उसके पास संसाधन भले कम थे, लेकिन सपने बहुत बड़े थे। शुरुआत एक साधारण सी पान की दुकान से हुई, लेकिन ईमानदारी, परिश्रम और दूरदृष्टि के बल पर उन्होंने न केवल खुद को सफल उद्यमी के रूप में स्थापित किया, बल्कि अपने साथ औरों को भी आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। श्री जायसवाल का जीवन इस बात का प्रतीक है कि सफलता केवल अपने लिए नहीं होती — वह तब पूरी होती है जब आप दूसरों को भी साथ लेकर चलते हैं। उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार का भविष्य संवारा, बल्कि समाज के जरूरतमंदों, युवाओं और सहयोगियों को भी अवसर देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी।

उद्योगपति पन्नालाल जायसवाल


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3 Comments

  1. exlcelnt writng

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