पहली बार 1962 में पहुंचे मुंबई सांकरा निको: धरसींवा के सोडरा में स्थित नवनिर्मित श्री राधा भवन में श्रीमद भागवत महापुराण का आयोजन!-->… पति के नहीं रहने पर भी यादें जीवित रह सकें, इसलिए स्पर्म प्रिजर्व करने की मांग मध्य प्रदेश रीवा।!-->!-->!-->… मुख्यमंत्री ग्राम सड़क भूमिपूजन कार्यक्रम के मंच से वार्षिक कैलेंडर 2025 का विमोचन किया कवर्धा:!-->!-->!-->… शक्ति साधना यज्ञ नौ लाख नवार्ण मंत्रों की आहुति 30 जनवरी से होगी शुरू प्रयागराज।। ऐं ह्रीं क्लीं!-->!-->!-->… प्रयागराज। प्रयागराज में महाकुंभ के अवसर पर, प्रेमभूषण महाराज 14 जनवरी से नव दिवसीय श्री राम कथा का!-->… व्यवसाय खबर।प्रयागराज महाकुंभ 2025 : गंगा तव दर्शनात् मुक्ति अर्थात गंगा तेरे दर्शन मात्र से ही!-->… रायपुर । छत्तीसगढ़ स्टील री-रोलर्स के अध्यक्ष संजय त्रिपाठी को आल इंडिया स्टील री रोलर्स एसोसिएशन!-->…महज चौदह वर्ष की आयु, अनजान शहर में कहां जाना होगा, क्या काम करना पडे़गा कुछ भी पता नहीं था, बस कुछ हटकर करना है। यही मन में उद्देश्य और उत्साह लेकर अहमदाबाद के उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल मुंबई में पहुंचे थे। उन्हें यह कभी आभास नहीं था कि वह पान लगाने के पेश से जुड़कर एक दिन उद्योगपति के तौर पर पहचाने जाएगें। लेकिन संघर्ष और ईमानदारी के बदौलत उनके जीवन में एक बड़ा मुकाम या कहे मुंबई में पान की दुकान ने उनकी किस्मत बदल दी। जिसका अंदाजा उन्हे भी कभी नहीं था। बस भरोसा इतना जरूर था कि मेहनत कर कुछ बड़ा करना है।
व्यवसाय खबर डाट कॉम से लंबी चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि आज मेरी इस सफलता के पीछे मां स्वर्गीय कौशल्या देवी का आशीवार्द, साथ ही मुंबई के जोगेश्वरी महाकाली गुफा की उस छोटी सी पान की दुकान के बदौलत ही सब कुछ मिला है।इसलिए जीवन की सफलता का श्रेय मां और पान की दुकान को ही देना चाहुंगा। आपको बताते हुए आज मुझे बड़ी खुशी हो रही है कि मैने चालीस वर्ष पहले उस छोटी सी पान की दुकान पर दिन-रात मेहनत कर बहुत कुछ सीखा। कार्य करने के दौरान किस प्रकार से पान, सुगंधित सुपारी के साथ बाजार में कैसे व्यवसाय की जाती है। इसकी जानकारी हुई। साथ ही ग्राहक और एक कारोबारी का रिश्ता क्या होता है।
दूसरों का सहयोग करके उन्हें भी आगे बढ़ाया
जौनपुर (उत्तरप्रदेश) से 1400 किलोमीटर ट्रेन का सफर कर मुंबई पहुंचे श्री पन्नालाल के मन में कुछ नया करने का जोश बचपन से ही थी। बस उसे साबित करने का उन्हें असली वक्त इंतजार था। ऐसे ही कर्म-योगी और उद्योगपति, सामाजिक, धार्मिक महानुभाव उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल जी का जिक्र हम यहां कर रहे हैं, जिन्होंने उत्तरप्रदेश की उर्वरा भूमि में जन्म लेकर संघर्ष करते हुए न केवल अपना जीवन संवारा, बल्कि घर-परिवार, समाज और दूसरों का सहयोग करके उन्हें भी आगे बढ़ाया।
सतत मेहनत और नेक इरादे के साथ अम्बे मां और माता कौशल्या देवी का आशीवार्द मिला। जिसकी बदौलत लगातार बारह से पंद्रह घंटे मेहनत करने का परिणाम कुछ वर्षो में मिलने शुरू हो गए। उनकी सफलता की गाथा में खास बात यह है कि एक ठेठ गांव का युवा गांव महज पांचवी तक की पढ़ाई कर जन्मभूमि से निकलकर, अपने श्रम से आगे बढ़ता है और सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों की पंक्ति में आगे खड़ा हो जाता है।
पिता मोटे अनाज खरीदने का करते थे व्यवसाय
महज पांचवीं क्लास तक पढ़ाई करने वाले उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल का जन्म ग्राम- शिवरिहा, जिला-जौनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनके पिता का नाम स्वर्गीय श्री बैजनाथ और माता का नाम स्वर्गीय श्रीमति कौशल्या देवी जायसवाल था। 11 नवंबर, 1944 को जन्मे उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल कुल पांच भाई-बहन थे- स्वर्गीय सीताराम, स्वर्गीय राजाराम, पन्नालाल, बहन कलावती और शांति देवी। पिता बैजनाथ जायसवाल का तिलहन सहित मोटे अनाज खरीदने का छोटा-सा व्यवसाय करते थे।
पिता के कारोबार में मन नहीं लगता था
श्री पन्नालाल बचपन से ही बड़े ही शांत प्रिय के साथ होशियार थे। कुछ अलग करने की सोच रखने वाले श्री पन्नालाल का मन पिता के कारोबार में नहीं लगता था, लेकिन पिता की यही इच्छा थी कि जीवन में कोई भी कारोबार करने के लिए लगन और मेहनत सबसे जरूरी है, जिसे किसी भी कारोबार से सीखा जा सकता है। इसलिए नहीं चाहते हुए भी पारंपरिक व्यवसाय के कार्य में जुट रहे रहते थे।
उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल अपने अन्य भाइयों और बहनों की अपेक्षा माता कौशल्या देवी के बहुत लाडले थे, इसलिए पिता की अपेक्षा जब कभी वे मुंबई जाते तो मां को जरूर बताते। इसी तरह कुछ अपने तरीके से कार्य करने के लिए उनका मुंबई अपने बड़े भाई के पास 1962 से लेकर 1964 तक कई बार आना-जाना हुआ।
ट्रेन में चिक्की तक बेची
संघर्ष के दिनों में श्री पन्नालाल ने लोकल ट्रेन में चिक्की, फल भी बेची, लेकिन लंबे समय तक पान की दुकान से जुड़े रहे। लेकिन कभी किसी कार्य को करने में आलस नहीं दिखाई, सतत मेहनत करते रहते थे। कुछ वर्ष बाद उन्होंने पान की दुकान के साथ ही सुगंधित सुपारी, किमाम, पान मसाला, चटनी, स्वयं तैयार करने के लिए जोगेश्वरी में कारखाना खोला। जोकि मानों उनकी सफलता का दरवाजा खुल गया। हालांकि इस दौरान पारिवारिक जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगी।महक ग्रुप से जीवन में मिली सफलता
मुंबई के कारोबार को लेकर अक्सर बेंगलुरु, अहमदाबाद, दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों में उद्योगपति पन्नालाल जी का आना-जाना होता था। बस इसी दौरान एक दीक्षित सेल्समैन के माध्यम से दिल्ली की महक ग्रुप कंपनी से जुड़ने का अवसर मिला। महक ग्रुप के उद्योगपति आदरणीय गणेशीलाल जैन जी से दिल्ली में भेंट हुई। यह मुलाकात मानों पन्नालाल जी के लिए तरक्की के मार्ग खोल दिए। उद्योगपति पन्नालाल जी को अहमदाबाद में व्यापार को बढ़ाने में पुराने व्यवहार और मां अंम्बे का आशीवार्द मिलता गया।इसके बाद उनकी जिंदगी में तरक्की का बड़ा बदलाव आया कि वह फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखे। जोकि कुछ वर्षो के बाद मुंबई में शुरू किए कारोबार को बंद कर या कहे तरक्की के लिहाज से गुजरात में महक ग्रुप के उत्पादनों को ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए मिलकर एक मंच पर आ गए। बहुत ही सुलझे और बात के पक्के इंसान
महक ग्रुप में उत्पादन की जिम्मेदारी संभाल रहे जीएल जैन के छोटे भाई उद्योगपति एसके जैन जी कहते है कि पन्नाभाई जैसा व्यवहार और इंसान आज तक जीवन में कभी देखने को नहीं मिला। बहुत ही सुलझे और बात के पक्के इंसान है। महक ग्रुप को अहमदाबाद, गुजरात में आगे बढ़ाने में उनका बहुत बड़ा सहयोग रहा है। जिससे जोकि मौजूदा समय अहमदाबाद-गुजरात में सी एंड एफ एजेंट के रूप में कार्य कर रहे है। इसके अलावा होटल के व्यवसाय से लेकर कलावती ऑर्गेनाइजर प्राइवेट लिमिटेड, रियल वैल्यू फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड, पैकिंग डिस्ट्रीब्यूटर सहित पीवी इंटरप्राइजेज, प्रकाश हिंदी हाई स्कूल, अरिहंत इंटरप्राइजेज, शिवांस इंटरप्राइजेज, जीपीके हालीडेज की नींव रखी।
जब मातृभूमि के लिए कुछ करने का हुआ मन
कारोबार में बड़ी सफलता मिलने के बाद उद्योगपति पन्नालाल ने अपनी मातृभूमि के प्रति भी स्वयं की जिम्मेदारी को समझते हुए और गांव में बच्चों को शिक्षा के लिए कई किलोमीटर दूर का सफर न करना पड़े, इसके लिए 17 जुलाई, 2011, दिन रविवार को कौशल्या देवी बैजनाथ जायसवाल मैना देवी शेर बहादुर सिंह महाविद्यालय की नींव ग्राम गुवावा, भीलमपुर में नींव रखी। मौजूदा समय में कॉलेज में कला से लेकर कई तकनीकी पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं। गांव की बेटियों को अब कई किलोमीटर साइकिल से सफर नहीं करना पड़ रहा है। साथ ही समाज से जुड़े हुए कमजोर तबके के छात्रों को पाठ्यक्रम की फीस में विशेष छूट देने की पहल भी शुरू की गई है।
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साक्षात्कार: मुंबई में एक पान की दुकान के बदौलत ही तय हुआ, उद्योगपति तक का सफर : सेठ पन्नालाल जायसवाल
पन्नालाल बचपन से ही बड़े ही शांत प्रिय के साथ होशियार थे। कुछ अलग करने की सोच रखने वाले श्री पन्नालाल का मन पिता के कारोबार में नहीं लगता था,
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धन्यवाद