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खुद की सोच और परिश्रम की उपज है मेरी सफलता -डॉ0 अख्तर हसन रिजवी

किसी से भी पांच रुपये का सहयोग नहीं लिया हूं…..

पंकज दुबे द्वारा पूर्व में लिए साक्षात्कार का प्रस्तुत कुछ अंश…
व्यवसाय खबरराजदरबार पत्रिका में प्रकाशित माटी के लाल सेगमेंट में हर बार अपने पाठकों को एक खास शख्सियत से रूबरू कराते है। जिनका सामाजिक राजनैतिक, शिक्षा और व्यापार आदि के क्षेत्र में समान अधिकार है। जिनके बारे में आवाम के दिल से यही आवाज निकलती हैं कि हौसला वो जो उड़ान भरता है, सूरज उसी को सलाम करता है। जी हां हम बात कर रहे है उत्तरप्रदेश की धरती पर पैदा हुए और मुंबई के चर्चित बिल्डर्स, शिक्षाविद व पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ0 अख्तर हसन रिज़वी साहब की

डा अख्तर हसन रिजवी

मुंबई में जरूरतमंदों मदद की जिन्होंने मुंबई में जरूरतमंदों की मदद ही नहीं की बल्की अपनी गाढ़ी कमाई से बांदा, खार, मालाड, कुर्ला और गोवा सहित कई जगहों पर बहु मंजिला बिल्डिंग का निर्माण किया। इसके साथ ही शैक्षणिक क्षेत्र में मुंबई सहित उत्तरप्रदेश के करारी-कौशांबी (जन्मस्थली), जौनपुर, लखनउ, बनारस की धरती पर स्कूल से लेकर डिग्री कालेज, इंजीनियरिंग कालेज, बीएड़ सहित कई शिक्षण कालेज रिजवी के नाम से संचालित हो रहे है। जहां से बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं डिग्री प्राप्त कर देश-विदेश में नाम कमा रहे है।

राजदरबार पत्रिका में प्रकाशित

सफलता की दीवारें कभी जर्जर नहीं हो सकती
अपने प्रोफेशनल जीवन शैली में उन्होंने कभी बढ़ती उम्र को हावी नहीं होने दिया, बल्कि उसी बदलते दौर से विकास की नई परिभाषा लिखी। स्वयं के जीवन को हमेशा बेदाग व सफल बनाने की मंशा जेहन में रखने वाले डा अख्तर हसन रिजवी साहब ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। खुद के बनाए वसुलों व सिद्धातों पर चलकर सफलता की मजबूत नींव रखी। जिसकी दीवारे कई वर्षों तक जर्जर नहीं हो सकती।

स्वयं की गाढ़ी कमाई से खड़ा किया पूरा करोबार
-अपनी उपलब्धियों के बारे में उन्होंने कहा कि कभी किसी का सहारा नहीं लिया। खुद के सोच-समझ और गाढ़ी कमाई से सब कुछ बनाया हूं, पांच रुपए की भी मदद किसी भी व्यक्ति, समाज या सरकार से नहीं मिला है। परिश्रम से सन 1885 में रिजवी बिल्डर्स सहित शैक्षणिक संस्थान का गठन किया गया।

शहरी परिवेश में पले बढ़े होने के बाद आपने करारी (कौशांबी) में शिक्षा की एक बड़ी आधारशिला रखी?

राजदरबार पत्रिका में प्रकाशित

-उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद के कौशांबी में करारी नाम की जगह है। जो मेरे माता-पिता की जन्म-स्थली है। मेरे अभिभावक की जन्म-स्थली होने के नाते वहां के लोगों का पूरा हक व मांग थी कि यहां पर भी शिक्षा व विकास की नींव रखी जाए। जिसके बाद मैने करारी में स्कूल व महाविद्यालय की शुरुआत की।

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आप अपने जीवन में हासिल इन सफलता के लिए किसे आदर्श मानते हैं?

देखिए, मेरे इन सभी उपलब्धियों के पीछे सिर्फ मेरे स्वयं का योगदान है। इसमें किसी दोस्त या सरकार का कोई भी सहयोग नहीं है। मैने बिल्डर्स के व्यापार में जो कुछ सफलता हासिल किया, उसे इन सभी उपलब्धियों में लगाया। क्योंकि मैं यह सोचता हूं कि जिस समाज में आपको बड़ी सफलता मिली है, तो आप उस समाज को क्या दे रहे हैं? बस इसी सोच के चलते मैने समाज में शिक्षणकार्य के विकास के लिए कई कॉलेजों के साथ आधुनिक शिक्षा की शुरुआत किया।

आपने बिल्डिंग निर्माण कार्य में काफी सराहनीय कार्य किया है, जिस पर राज्य सरकारों ने आपका कई बार मान सम्मान बढ़ाया है। इस पर क्या कहना चाहते हैं?
समाज में जब किसी की एक बड़ी स्थिती बन जाती है। तो उसे स्वयं का आत्मबल कहीं ज्यादा खुश कर देता है. दूसरी खुशीयों से। आत्म संतुष्टी सबसे बड़ी खुशी होती है। उसके बाद और कोई भी खुशी या बधाई तो एक आम चलन है।

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