रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी से करीब 38 किलोमीटर दूर आरंग में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर, जो कई वर्षो से शिवभक्तों के लिए धार्मिक और आस्था का जीवंत प्रतीक है। मान्यता है कि सबसे पहले मंदिर के गर्भगृह में भगवान सूर्य की किरण पहुंचती है।
- रामायण और द्वापर युग से जुड़ा है पौराणिक तीर्थस्थल
- श्रीराम और माता सीता का वनवास कालीन विश्राम स्थल
इतिहासकारों डॉ. तेजकुमार जलक्षत्री की माने तो त्रेतायुग में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान इस स्थल पर कुछ समय के लिए ठहरे थे और भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। यह मंदिर रामवन मन पथ का 98वां पड़ाव माना जाता है, जिससे इसकी ऐतिहासिक महत्ता और बढ़ जाती है।
‘नागर शैली की अद्भुत वास्तुकला का उदाहरण
द्वापर युग में भी इस स्थल की पौराणिक महिमा बनी रही। कथा है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मोरध्वज नामक राजा की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए इसी स्थान पर आगमन किया था। 11वीं सदी में राजा मोरध्वज द्वारा निर्मित यह शिव मंदिर ‘नागर शैलीÓ की अद्भुत वास्तुकला का उदाहरण है। इसमें कुल 108 खंभे हैं, जिनमें 24 खंभे मंदिर मंडप के अंदर हैं – जो 24 घंटे के समय चक्र का प्रतीक माने जाते हैं – और 8 4 खंभे मंदिर परिसर की बाहरी दीवारों में हैं, जो 84 लाख योनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
श्रृंगार उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की तरह किया जाता
इस मंदिर की एक विशेष बात यह है कि हर दिन की पहली सूर्य किरण सीधे शिवलिंग पर पड़ती है, जो इसकी ज्योतिषीय गणना और स्थापत्य कौशल को दर्शाता है। मंदिर के इतिहासकार डॉ. तेजकुमार बताते हैं कि यहां भगवान भोलेनाथ का श्रृंगार उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की तरह किया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन विशेष रुद्राभिषेक, दुग्धाभिषेक और पंचामृत स्नान के साथ-साथ भव्य श्रृं्रगार, भजन-कीर्तन, महाआरती और रात्रि जा्रगरण का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
महाशिवरात्रि पर होता है दिव्य अनुभव
मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन इस प्राचीन मंदिर में दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक, ज्योतिषीय और पौराणिक महत्ता श्रद्धालुओं को एक अलौकिक अनुभूति प्रदान करती है। भगवान श्रीराम के पदचिह्नों से जुड़ा यह मंदिर, महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर भक्ति, श्रद्धा और आस्था का भव्य संगम बन जाता है।

जय भोलेनाथ। बहुत बढ़िया वर्णन।
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