अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान रायपुर के नेफ्रालॉजी विभाग के डॉक्टरों को कहा धन्यवाद
पंकज दुबे
छत्तीसगढ़ (रायपुर) ।
मां, एक ऐसा शब्द जो हम सभी के दिलों में अनमोल स्थान रखता है। वह हमें जीवन देती है, हमें पाला-पोसा है, और सबसे बड़ी बात यह है कि वह जरूकिसरत पड़ने पर बच्चों के लिए अपनी जान भी न्योछावर करने को तैयार रहती है। मां का प्यार वाकई निस्वार्थ होता है, और कभी-कभी यह प्यार कुछ ऐसा रूप ले लेता है, जो सचमुच अद्वितीय होता है। मदर्स डे पर कुछ इसी तरह की मां की कहानी है, जिन्होंने अपनी किडनी दान कर बेटे को एक नया जीवन दिया, या कहे उजड़ते कोख की रक्षा की। मां का यह बलिदान जो आज हर किसी को भावुक कर देगा।

हंसते-खेलेते यश के बारे में सुनी तो सदमा सा लग गया – इंदु धनुक
मूलरूप से कानपूर के रायगढ़ में रह रहे 21 वर्षीय यश धनुक रोजमर्रा की तरह ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। एक दिन उन्हे बुखार आया तो आसपास के डाक्टर को दिखाया गया, लेकिन कई दिनों तक दवा खाने के बाद भी आराम नहीं मिला। जांच में पता चला कि ब्लड़ कम है, दवाई लिखी गई, लेकिन हालत जस की तस। ऐसे में अल्ट्रासाउंड किया गया, जिसमें पता चला की यश की दोनों किडनी डैमेज हो गई। इस रिपोर्ट के बाद यश की मां इंदु धनुक (49) को गहरा सदमा लगा। उन्हे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि हंसते-खेलते उनके यश की किडनी खराब हो गई है। रायगढ़ में लगातार डायलिसिस के बाद भी बेटे की हालत बेहतर नहीं हो रही थी। जिसके बाद एम्स रायपुर (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में दिखाया। जहां नेफ्रोलांजी विभाग के डॉक्टर विनय राठौर व उनकी सहयोगी टीम ने बेटे की जांच कर किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी, क्योंकि बिना ट्रांसप्लांट के उसकी जान का कोई भरोसा नहीं था। जिसके बाद मां इंदु धनुक ने एकलौते बेटे यश के लिए अपनी किडनी दान करने का निर्णय लिया । भगवान से प्रार्थना करती रही कि उनका ब्लड़ ग्रुप का मिलान हो। एक अक्टूबर 2024 को एम्स रायपुर में सफल सर्जरी हुई। आज मां-बेटे दोनों ठीक है, और नेफ्रोलांजी विभाग को लाखों दुआए दे रहे है।
बेटे को किडनी देकर बहुत खुश हूं, अपने जीते जी बच्चे को तकलीफ में नहीं देख सकती हूं – झामिक
45 वर्षीय भिलाई रहवासी झामिक यर्दा बताती है कि बेटे कुनाल (22) को अपनी किडनी देकर मै बहुत खुश। क्योंकि ट्रांसप्लांट के लिए सही किडनी का मिलना आसान नहीं था, और इलाज में देरी के कारण उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। यह संकट उसके परिवार के लिए बेहद कठिन था। हम सभी हर रोज़ उसकी हालत को लेकर चिंतित रहते थे। आसपास कई डाक्टर को दिखाया, आयुर्वेद दवा कराई। इसके बाद भी आराम नहीं हुआ। पैर में सूजन, पेशाब करने में तकलीफ यह सभी परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। जिसके बाद मैने स्वयं निर्णय लिया कि कुनाल को अपने जीते जी तकलीफ में नहीं देख सकती हूं। रायपुर एम्स नेफ्रोलांजी विभाग में दिखाया, जहां पर डाक्टर विनय राठौर और उनकी पूरी टीम का पूरा सहयोग मिला।
फिर 21 जनवरी 2025 को एक बेहद साहसिक और निस्वार्थ निर्णय का सुखद परिणाम मिला। बेटे कुनाल को किडनी देकर उन्हे एक नई जिंदगी मिली। नेफ्रोलांजी विभाग का पूरी जिंदगी आभारी रहूंगी।

मां का यह दान जिंदगी भर चुका नहीं कर पाउंगा – भीमराज ठाकरे
भीमराज ठाकरे (30) रायपुर में एक प्राइवेट कंपनी जांब कर रहे थे, लेकिन एक दिन उन्हे उल्टी, सिर दर्द की शिकायत हुई। जांच कराई तो पता चला की ब्लड़ सूगर बढ़ने की वजह से यह तकलीफ हुई। कुछ दिन बाद उनके हाथ-पैर में सूजन, बीपी बढ़ने की शिकायत आने लगी। दोबारा कई तरह के जांच हुई। एक जांच में किटनाइट का स्तर बढ़ा मिला। जिसके बाद एम्स रायपुर के नेफ्रोलांजी विभाग में दिखाया। जहां पर कुछ महिनों तक डायलसिस चला, लेकिन डाक्टर का कहना था कि यह प्रक्रिया बहुत कारगर नहीं है। इसलिए किडनी प्रत्यारोपण ही एक मात्र विकल्प होगा।
ऐसे मेें कलाबाई ठाकरे (54), जो अपने एकलौते बेटे को अपनी जि़ंदगी से भी ज्यादा प्यार करती थीं, उन्होंने बिना कोई देर किए 14 जनवरी 2025 को अपनी किडनी दान करने का निर्णय लिया। वह जानती थीं कि इस फैसले के साथ कुछ जोखिम जुड़े हैं, लेकिन एक मां के दिल में कोई डर नहीं होता, जब बात अपने बच्चे के जीवन को बचाने की हो। वहीं भीमराज कहते है कि मां का यह दान वह जिंदगी भर चुका नहीं पाएगे। धन्य है मेरे माता-पिता।
