महाराष्ट्र मंडल की 90वीं वर्षगांठ पर आयोजित मराठी सोहला
रायपुर। महाराष्ट्र मंडल की 90वीं वर्षगांठ पर आयोजित मराठी सोहला के दूसरे दिन संत ज्ञानेश्वर सभागृह रंगप्रेमियों से खचाखच भरा रहा। अवसर था हिंदी नाटक मैं अनिकेत हूं के मंचन का, जिसने दर्शकों को भावनाओं के गहरे सागर में डुबो दिया। Theatre lovers immersed in Aniket’s emotions, a brilliant staging of ‘Main Aniket Hoon’
नाटक की शुरुआत होते ही जैसे ही मंच पर तेज़ स्वर गूंजता है – मैं अनिकेत हूं… मैं अनिकेत हूं… और मैं अनिकेत ही हूं… – सभागृह में सन्नाटा छा जाता है। करीब 10 सेकंड तक यह खामोशी कायम रहती है, और फिर गूंजती हैं तालियों की ज़ोरदार गड़गड़ाहट, जो कई मिनटों तक थमती नहीं।

मैं अनिकेत हूं सिर्फ एक नाटक नहीं
मैं अनिकेत हूं सिर्फ एक नाटक नहीं, बल्कि स्वयं की पहचान, अस्तित्व की खोज और सामाजिक असंवेदनशीलता पर गहराई से विचार करने वाला मंचन है। दर्शकों की आंखें नम थीं, तालियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं। यह नाटक की सफलता की सबसे बड़ी गवाही थी।
शशि वरवंडकर की दोहरी भूमिका में चमक
वरिष्ठ रंगकर्मी शशि वरवंडकर ने इस नाटक में केवल अनिकेत की जटिल भूमिका को जीवंत ही नहीं किया, बल्कि इस नाटक के निर्देशन की बागडोर भी संभाली और पहली ही कोशिश में खूब सराहना बटोरी।

सशक्त सहकलाकारों ने बांधा समां
मीनाक्षी की भूमिका में डॉ. अनुराधा दुबे ने एक बार फिर अपने पूर्व प्रदर्शन को दोहराया और भरपूर तालियां पाईं। वकील भारद्वाज के रूप में चेतन गोविंद दंडवते ने दमदार संवाद अदायगी से सबका ध्यान खींचा। सावित्री बाई की भूमिका में भारती पलसोदकर के हिंदी-मराठी संवादों ने खूब सराहना बटोरी। डॉ. शिरोडकर के रूप में आचार्य रंजन मोडक की ओजपूर्ण प्रस्तुति और संवादों ने दर्शकों को खूब प्रभावित किया।