अपडेटजागरूक करने जैसे कार्यताजा खबरप्रादेशिक-जिलासमाचार

नए बीजों और अन्य फसलों की खेती पर भी ध्यान देने की हैं जरूरत: डा मनिंदर कौर द्विवेदी

देश-विदेश के नीति निर्माता, पर्यावरणविद, विशेषज्ञ और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने रखे विचार

छत्तीसगढ़ (रायपुर)। धमतरी में रविशंकर जलाशय (गंगरेल बांध) के किनारे आयोजित जल जगार में देश-विदेश के नीति निर्माता, पर्यावरणविद, विशेषज्ञ और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के प्रतिनिधि जल संचय और जल संरक्षण पर अपने विचार रखें। विचार-विमर्श के इस आयोजित अंतरराष्ट्रीय जल सम्मेलन में जल संचय और जल संरक्षण के महत्व को रेखांकित करते हुए अपने-अपने क्षेत्रों के सफल कार्यों को लेकर चर्चा की गई। इसी कड़ी में पहले दिन केन्द्रीय कृषि तथा किसान कल्याण मंत्रालय की अपर सचिव डा मनिंदर कौर द्विवेदी ने मंच को संबोधित करते हुए कहा कि धमतरी में जल संरक्षण की पहल पुरानी है। यहां की ‘ओजस्वी’ एफपीओ (कृषक उत्पाद संगठन) ने कम पानी में होने वाले धान की खेती प्रारंभ की थी। उन्होंने बताया कि धान की ऐसी बहुत सी प्रजाति है जो कम पानी में होती है और जल्दी पकती है। उन्होंने इस तरह की और भी प्रजातियों को विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने नए बीजों और अन्य फसलों की खेती पर भी विशेष ध्यान देने की बात कही।


जन भागीदारी बहुत जरूरी है: अर्चना वर्मा
केन्द्रीय जलशक्ति मंत्रालय की अपर सचिव अर्चना वर्मा ने अंतरराष्ट्रीय जल सम्मेलन में कहा कि हमारे पूर्वजों के पास जल संचय और जल संरक्षण के बहुत से तरीके थे। वे पानी की एक-एक बूंद का सम्मान करते थे। हमारी जलशक्ति अभियान का भी मूल उद्देश्य पानी की धरोहरों के प्रति सम्मान को वापस लाना है। जल संचय और जल संरक्षण के काम में जन भागीदारी बहुत जरूरी है। उन्होंने जल जगार के आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि यह जल संरक्षण से लोगों को जोड़ने की बहुत अच्छी पहल है। इससे संस्कृति, समुदाय और युवाओं की भागीदारी बढ़ रही है।
पश्चिमी घाट का संरक्षण जरूरी है
पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविदों और जल संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले सर्वश्री पोपटलाल पवार, श्यामसुंदर पालीवाल और उमाशंकर पाण्डेय ने सम्मेलन में जल संचय और जल संरक्षण की सफल कहानियां साझा की। श्री पवार ने कहा कि जलस्रोतों में कम से कम 20 प्रतिशत पानी रिचार्ज के लिए छोड़ना चाहिए। इसका 80 प्रतिशत ही उपयोग किया जाना चाहिए। हमारे हिमालय को बचाने के लिए पश्चिमी घाट का संरक्षण जरूरी है।
पानी सरकार का विषय नहीं है
सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद श्यामसुंदर पालीवाल ने बताया कि उन्होंने अपने क्षेत्र में जल संरक्षण के लिए बेटी, पानी और पेड़ों को जोड़कर काम किया। इसे रोजगार से भी जोड़ा। पर्यावरणविद उमाशंकर पाण्डेय ने कहा कि पानी सरकार का विषय नहीं है। यह समाज का विषय है। पानी के बारे में स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाना चाहिए। हम पानी बना नहीं सकते, लेकिन पानी को बचा सकते हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं शहरी विकास विशेषज्ञ प्रो. अमिताभ कुंडु ने सम्मेलन में कहा कि जल की चिंता को लेकर जिला स्तर पर इस तरह का वृहद आयोजन पहली बार देख रहा हूं। यहां नीति निर्धारक, पर्यावरणविद, जल संरक्षक, विशेषज्ञ और नागरिक पानी के बारे में चर्चा कर रहे हैं। उसे बचाने की रणनीति बना रहे हैं। यह बहुत ही उपयोगी पहल है।

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *