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टिश्यू कल्चर से तैयार ऑर्गेनिक केला: मिठास और मुनाफे का सही संगम

कृषि विवि में तैयार : किसानों की आमदनी में 40 प्रतिशत तक का इज़ाफा, महिलाओं की भी बढ़ी भागीदारी

.. अब केला उगाना होगा और भी आसान, हर -दिन में तैयार होगा नया पौधा

खेतों में ऐसे करें उपयोग
-एक एकड़ में लगभग 1400 पौधे लगाए जा सकते हैं।
-प्रत्येक गड्ढे का आकार 45&45 सेमी होना चाहिए।
-पौधों के बीच 1.5 मीटर की दूरी रखना जरूरी है।
-अच्छे उत्पादन के लिए फर्टिगेशन तकनीक (खाद और सिंचाई का एकीकृत उपयोग) अपनाना चाहिए।
जब फल आने लगे तो काले पॉलीथिन से ढक दें ताकि धब्बे या दाग न पड़ें।

रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में बायो टेक्नोलॉजी विभाग ने ऑर्गेनिक तरीके से एक नई तकनीक के माध्यम से टिश्यू कल्चर केले का सफल विकास किया है। इस पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें केले के पौधे को किसी प्रकार का रोग नहीं लगता और न ही इसमें रासायनिक असर होता है। यह केला न केवल अधिक मीठा होता है, बल्कि इसकी गुणवत्ता और शेल्फ लाइफ भी आम केले की तुलना में कहीं बेहतर होती है।

ऐसे तैयार होता है टिश्यू कल्चर केला
बायो टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर ने बताया कि इस तकनीक में केले के बीज का नहीं, बल्कि मुख्य तने (मेन स्टेम) का उपयोग किया जाता है। जिससे मजबूत तने का चयन कर वायरस टेस्टिंग की जाती है। ताकि सिगाटोका, लीफ स्पॉट, बजनीटॉप वायरस जैसे रोगों की पहचान की जा सके। उसके बाद उसे कंटेनरों में 25 दिनों तक रखा जाता है। अंकु रण (शूट्स और लीव्स का विकास) शुरू होता है। इसके बाद उसे रूटिंग प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है और कोकोपिट में ट्रांसफर किया जाता है। अंतत: देशी गोबर की खाद और फॉरेस्ट पॉलीथिन में पौधों को लगाया जाता है। इस दौरान रासायनिक खाद या कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता, जिससे यह केला पूरी तरह ऑर्गेनिक होता है।

ये विशेषताएं बनाती है इसे खास
रोगमुक्त उत्पादन: टिश्यू कल्चर तकनीक में पौधों की वायरस टेस्टिंग होने के कारण यह पूरी तरह से रोगमुक्त होते हैं।

उ’च गुणवत्ता और मिठास: आम केले की तुलना में इसका स्वाद अधिक मीठा होता है और बंडल मिट्टी से निकालने के बाद भी जल्दी खराब नहीं होता।

सतत उत्पादन: एक बार पौधा तैयार होने के बाद इसका कांदा हर &-4 दिन में एक नई शाखा देता है, जिससे लगातार उत्पादन होता है।

धमतरी के किसान रमेश साहू ने अपने 1.5 एकड़ भूमि में 2000 टिश्यू कल्चर तकनीक अपनाई। जिससे इस बार उन्हे बीमारी या कीटनाशकों पर कोई खर्च नहीं करना पड़ा। पौधों की ग्रोथ समान रही और फल भी आकार व स्वाद में बेहतर निकले। उन्होंने परंपरागत केले की तुलना में 25 प्रतिशत उत्पादन प्राप्त किया। स्थानीय मंडी में उनके ऑर्गेनिक केले की अ’छी मांग रही और उन्हें प्रति क्विंटल 400 रुपए अधिक भाव मिला।

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बलौदाबाजार की महिला किसान संगीता यादव ने एक एकड़ ज़मीन पर 1400 टिश्यू कल्चर केले का ट्रायल किया। उन्होंने फरवरी में रोपाई की और अगस्त तक पौधों में फल आना शुरू हो गया। सभी पौधे स्वस्थ रहे। उन्हे लगभग 250 क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया। उनके ऑर्गेनिक केले को रायपुर की रिटेल चेन से सीधा खरीददार मिल गया, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हुई और लाभ 40 प्रतिशत तक बढ़ गया।

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