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बेटे के जीवन पर आया संकट तो किडनी देकर पिता और ससुर ने बचाई बच्चों की जान

  • 70 वर्षीय पिता को था प्रोस्टेट कैंसर, एम्स रायपुर के नेफ्रालांजी विभाग में सफल उपचार
    -एम्स के डॉक्टर विनय राठौर सहित उनकी पूरी टीम को परिजनों ने दिल से कहा शुक्रिया

अंतरराष्ट्रीय फादर्स डे
रायपुर। हर किसी इंसान के जीवन में मां के बाद पिता का बड़ा महत्व होता है, जो बच्चों की खुशियों के लिए ना जाने कितनी अपनी खुशियां हंसते-हंसते कुर्बान कर देते हैं। जिसकी भनक भी बच्चों तक लगने नहीं देते हैं। अंतरराष्ट्रीय फादर्स डे पर ऐेसे ही दो पिता के बारे में आपको बताने जा रहे है, जिन्होंने जब बेटे के जीवन पर संकट आया तो अपने शरीर के कष्टों की अनदेखी कर किडनी का दान कर दिया।

बेटे के दर्द के आगे अपना दर्द भूल गया: ग्यानेश्वर देवाराम चौधरी
भिलाई पावर हाउस निवासी ग्यानेश्वर देवाराम चौधरी (70 वर्ष) बताते हैं कि चार बच्चों में बड़े बेटे सतीश की किडनी खराब होने के बाद डायलिसिस शुरू हो गई। लगभग चार चर्ष तक कई जगहों पर दिखाया गया, लेकिन बच्चों को राहत मिलने के बजाय उसकी तकलीफे बढ़ती जा रही थी। इसी दौरान मुझे भी प्रोस्टेट कैंसर डिटेक्ट हुआ।

सतीश
ग्यानेश्वर देवाराम चौधरी

सतीश को किडनी देने का निर्णय लिया
ऐसे हालत में पूरा परिवार सतीश को लेकर वैसे ही चिंतित था, अब इस ढलती उम्र में कैंसर जैसी बीमारी हम सभी के लिए एक बहुत बड़ा संकट था। इसके बाद 70 वर्षीय पिता ग्यानेश्वर ने खुद की तकलीफों को भुलाते हुए सतीश को किडनी देने का निर्णय लिया। सितंबर 2023 में एम्स रायपुर के नेफ्रालॉजी विभाग में उपचार शुरू हुआ। जहां पर विभाग के डॉक्टर विनय राठौर सहित उनकी पूरी टीम ने पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी। साथ ही हम सभी का हौसला बढ़ाया और सफल अंगदान कराया। अब बेटा सतीष ठीक है।

लीलाराम साहू

बेटी के परिवार को कैसे उजड़ते देख सकता था: लीलाराम साहू
धमतरी निवासी किसान लीलाराम साहू ने तीन वर्ष पहले अपने चार बच्चों में सबसे बड़ी बेटी सरिता साहू की शादी हितेश्वर साहू के साथ करवाई। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, लेकिन इसी दौरान खेती-किसानी का कार्य कर रहे उनके दामाद हितेश्वर को बुखार-उल्टी आदि शिकायत शुरू हुई। उपचार कराया, लेकिन पैर में सूजन के साथ बुखार से राहत नहीं मिली। अल्ट्रासाउंड कराया तो दोनों किडनी खराब होने के लक्षण दिखे।

हितेश्वर साहू


हितेश्वर की मदद करने के लिए कोई नहीं था
परिवार में इकलौते हितेश्वर की मदद करने के लिए कोई नहीं। उनके माता-पिता काफी बुजुर्ग होने के साथ कई रोगों से परेशान थे। एम्स रायपुर के नेफ्रालॉजी विभाग में हितेश्वर का उपचार शुरू हुआ, लेकिन परिवार के सामने किडनी का दान कौन करेगा, यह सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया। जब पूरे मामले की जानकारी ससुर लीलाराम साहू को हुई, तो उन्होंने अपनी बेटी के उजड़ते परिवार को बचाने के लिए किडनी देने का फैसला किया। लीलाराम बताते हैं, एम्स रायपुर के नेफ्रालॉजी विभाग के डॉक्टर विनय राठौर ने हम सभी की हिम्मत बढ़ाई। फिर दो महीने पहले ही हितेश्वर का सफल उपचार हुआ। वो अब ठीक हैं और रोजमर्रा के कार्य कर रहे है।

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