उद्योगपतियों की कहानीव्यापार

दोस्तों की जुबानी: मुंबई के दोस्त बीएम शाह बोले-दुःख के दिनों में उद्योगपति पन्नालाल जी ने हमेशा सच्ची मित्रता निभाई

व्यवसाय खबर (मुंबई)। कर्मठ उद्योगपति श्री पन्नालाल जायसवाल के धूप-छांव के दिन देखने वाले कई लोग हैं। उन्हीं में से एक हैं मुंबई के बीएन शाह जी। 40 वर्ष की दोस्ती को याद करते हुए वे कहते हैं- पन्ना भाई बहुत ही सुलझे और मिलनसार व्यक्ति हैं। उन्होंने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन मैंने उन्हें आज तक कभी किसी से ऊंची आवाज में बात करते नहीं देखाहर परिस्थिति में सदैव उन्हें मुस्करातेही पायाहै।मेरे लिए वह सिर्फ एक दोस्त ही नहीं है, बल्कि मेरे दुःख के दिनों उन्होंने एक सच्चे दोस्त की भूमिका निभाते हुए हर कदम पर मदगार बने है।

मुझे याद है, जब मुंबई के जोगेश्वरी पूर्व में पहली बार वह अपने भाई के साथ मेरी मेडिकल की दुकान पर आए थे। तभी उन्हें देखकर मुझे लगा था कि वे कुछ दिनों बाद वापस गांव लौट जाएंगे, क्योंकि मुंबई में जिसके लिए पर्याप्त सही तरह से रहने के लिए घर न हो। वह छोटी-सी पान की दुकान में कैसे जीवन यापन कर पाएगा, लेकिन अब उन्हे यह बताते हुए खुशी के साथ बड़ा गर्व हो रहा है कि पन्ना भाई ने अपनी मेहनत और लगन से मेरी उस सोच को गलत साबित करते हुए शानदार सफलता हासिल कर ली।

वाकई मैं शुरू में पन्ना भाई को समझ नहीं पाया था।जिससे अपनी इस सोच को लेकर अब झूठा साबित हुआ । क्योंकि तब मुझे इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था कि ठेठ देहाती भाषा बोलने वाला यह नौजवान एक दिन हम सभी को पीछे छोड़कर सफलता की बुलंदियों को छुएगा और एक दिन बड़े उद्योगपतियों के रूप में पहचाना जाएगा।

पान की दुकान पर कई घंटे बैठते थे
शाह जी ने आगे बताया कि पन्ना भाई शुरू से ही काफी सघर्षशील रहे हैं, जो लगातार पान की दुकान में कई घंटे बैठते थे। इस दौरान ग्राहकों के साथ तालमेल बनाना उनकी एक अद्भुत कला थी, जिसे देखकर मैं और मेरे बड़े भाई भी काफी प्रसन्न होते। उनकी पान की दुकान के पास ही मेरी मेडिकल की दुकान थी, जिसके कारण हम लोग एक अच्छे मित्र बन गए। पन्ना भाई के नेक स्वभाव के कारण मैं बीच-बीच में उनकी पान की दुकान में घंटों बैठा करता था। उनके अच्छे व्यवहार के कारण लोग पान खाने के बाद घंटों दुकान के पास खड़े होकर ठहाके लगाते रहते थे।
मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटे
बीएम शाह कहते हैं कि आज उनकी सफलता के पीछे सबसे बड़ा मेरी नजर में अगर कोई मूल मंत्र है तो वह है उनकी मेहनत, जिसके लिए उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। उस दौर की बात की जाए तो मुझे याद है, शुरुआती दिनों में वे पान की दुकान के ऊपर बनी छोटी-सी छत में ही सो जाया करते थे और सुबह हमारी मेडिकल की दुकान खुलने से पहले ही पान की दुकान खोल देते थे। उनका कार्य के प्रति लगन और मेहनत देखकर आसपास के अन्य दुकानदार काफी प्रभावित होते थे।

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