Featuredअपडेटजागरूक करने जैसे कार्यताजा खबरसमाचार

जिन पहाड़ों पर होती थी नक्सलियों की ट्रेनिंग, अब वहां चल रहा रोजगार प्रशिक्षण का केंद्र

बस्तर में शांति का नया अध्याय: नक्सल मुक्त इलाकों में वानिकी बन रहा रोजगार का प्रमुख जरिया

रायपुर। बस्तर जिले के सुदूर वनांचल में बसे क्षेत्र चांदामेटा, मुण्डागढ़, छिन्दगुर और तुलसी डोंगरी जो कभी नक्सल गतिविधियों के गढ़ माने जाते थे, अब विकास और शांति का नया अध्याय लिख रहे हैं। जिन पहाड़ियों और जंगलों में कभी नक्सलियों की ट्रेनिंग हुआ करती थी, वहीं आज वन विभाग स्थानीय युवाओं को वानिकी कार्यों का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार उपलब्ध करा रहा है।

ग्रामीणों में आई जागरुकताइन इलाकों में लंबे समय तक नक्सलियों के प्रभाव और उनसे जुड़े लोगों द्वारा कानूनों की गलत व्याख्या ने ग्रामीणों को विकास की मुख्यधारा से दूर रखा। शासन के प्रति अविश्वास का वातावरण बना दिया गया, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। ग्रामीणों ने इन तत्वों की वास्तविक मंशा को समझ लिया है और अब वे दूसरों की लड़ाई में अपना समय और भविष्य गंवाने को तैयार नहीं हैं।

सामाजिक रूप से भी सशक्त बनाया जा रहा हैवन विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा लगातार किए जा रहे संवाद, जागरूकता और विश्वास निर्माण ने ग्रामीणों का नजरिया बदला है। स्थानीय युवाओं और ग्रामीणों को उनके ही गांव के आसपास वानिकी कार्यों में रोजगार देकर न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत की जा रही है, बल्कि उन्हें सामाजिक रूप से भी सशक्त बनाया जा रहा है।

बांस वन प्रबंधन से बड़ा आर्थिक लाभ
ग्राम मुण्डागढ़ के समीप स्थित बांस वनों का इस वर्ष वैज्ञानिक तरीके से वन-उपचार किया गया है। ग्रामीणों द्वारा किए जा रहे इस कार्य से लगभग 20 लाख रुपये का तत्काल रोजगार सीधे उनके बैंक खातों में पहुँचेगा। आने वाले तीन वर्षों में लगभग 01 करोड़ 37 लाख रुपये के अतिरिक्त रोजगार की संभावना है। इस क्षेत्र से प्राप्त 566 नोशनल टन बांस के उत्पादन का शत-प्रतिशत लाभांश वन प्रबंधन समिति के माध्यम से ग्रामीण विकास में ही खर्च किया जाएगा।

क्षेत्रीय वानिकी उपचार से बढ़ेगा रोजगार
छिन्दगुर और चांदामेटा के पहाड़ी क्षेत्रों में इस वर्ष प्रवरण सह सुधार कार्य के तहत बीमार, वृद्ध और मृत वृक्षों को हटाकर जंगल का उपचार किया जा रहा है। इससे ग्रामीणों को 32 लाख रुपये का तत्काल रोजगार मिल रहा है। काष्ठ उत्पादन से प्राप्त आय का 20 प्रतिशत लाभांश भी गांव की समिति को मिलेगा। अगले 6 वर्षों में लगभग 43 लाख रुपये का अतिरिक्त रोजगार वन उपचार के माध्यम से उपलब्ध होगा। इसके अलावा वन विभाग ग्रामीणों से सतत संपर्क में रहते हुए उनकी आवश्यकताओं का समाधान भी कर रहा है। ठंड से बचाव के लिए कंबल वितरण, समिति सदस्यों को टी-शर्ट उपलब्ध कराना जैसी जरूरतें तुरंत पूरी की जा रही हैं।

एक समय भय और हिंसा की पहचान रहे ये इलाके आज शांति, आजीविका और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। वानिकी कार्यों के माध्यम से जल, जंगल और जमीन का संरक्षण करते हुए ग्रामीणों को स्थायी आजीविका उपलब्ध कराई जा रही है। बस्तर के नक्सल मुक्त गांव अब साबित कर रहे हैं कि जब विश्वास और विकास साथ आते हैं, तो परिस्थितियाँ बदलना केवल समय की बात होगी।
उत्तम गुप्ता, वन मंडलाधिकारी

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *